
नैतिकता की बात की जाये तो ‘आपिये’ जनता में पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं।
आम आदमी पार्टी के नेता पूरे देश में घूम-घूम कर भले ही दिल्ली सरकार की उपलब्धियों का ढिंढोरा पीट रहे हों, किन्तु भारतीय जनता पार्टी, विशेषकर दिल्ली भाजपा की सक्रियता से उसकी पोल परत दर परत खुलती जा रही है और जिस प्रकार उसके कारनामें जनता के सामने आ रहे हैं उससे ‘आप’ सकते में आ गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री पूरे देश में घूम-घूम कर कहते हैं कि मुझे राजनीति करनी नहीं आती है, मैं तो सिर्फ काम करना जानता हूं जबकि अब पूरा देश अच्छी तरह यह समझ चुका है कि वे सिर्फ राजनीति के अलावा और कुछ करते ही नहीं हैं।
‘आप’ देश की राजनीति बदलने आई भी किन्तु वह तो पहले से चली आ रही घिसी-पिटी रूटीन राजनीति को आगे बढ़ाने में देश के सभी दलों से आगे निकल गई है। जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, अल्पसंख्यकवाद, तुष्टिकरणवाद एवं मुफ्त की रेवड़ी बांटने के मामले में आज ‘आप’ का कोई पीछा ही नहीं कर पा रहा है। जब ‘आप’ पर तुष्टिकरण का जबर्दस्त आरोप लगा तो वह दिखावे के तौर पर पलटने की कोशिश करने लगी किन्तु उसकी आत्मा ‘तुष्टिकरण’ के ही इर्द-गिर्द घूमकर रह जाती है। टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करने के पीछे उसकी यही मानसिकता रही है।
‘आप’ के बारे में जब पूरे देश में चर्चा होने लगी कि देश के प्रति इसकी कोई जिम्मेदारी एवं वफादारी नहीं है, इसके नेता देश विरोधी तत्वों के साथ मेल-जोल बढ़ाने से कोई परहेज नहीं करते हैं तो अपनी इस छवि को बदलने के लिए ‘आप’ के लोग तिरंगा लेकर चलने लगे किन्तु इन पर जनता यह विश्वास करने के लिए कतई तैयार नहीं है कि ये लोग देश विरोधी तत्वों से यारी-दोस्ती नहीं करेंगे। तिरंगा लेकर चलने का पाखंड ‘आप’ के लोगों ने भले ही किया हो किन्तु कुछ स्थानों पर ‘भारत माता की जय’ एवं ‘वंदे मातरम्’ का नारा लगाने में ‘आपियों’ को सांप सूंघ जाता है। इस भाव को लेकर ‘आप’ के लोग जनता को कैसे संतुष्ट कर पायेंगे?
‘सबका साथ-सबका विकास’ एवं ‘देशभक्ति’ के मामले में संघ परिवार एवं भाजपा की बात की जाये तो यदि कोई दो बजे रात को कहीं खड़ा होकर ‘भारत माता की जय’ एवं ‘वंदे मातरम’ का नारा लगा दे तो लोग बिना विचार किये एवं सोचे-समझे कह देंगे कि संघ या भाजपा वाले आ गये। ऐसे समय में कोई अन्य दल का नाम नहीं लेगा। निश्चित रूप से देशवासियों की तरफ से भाजपा के लिए यह अनमोल प्रमाण पत्र है।
भाजपा की स्पष्ट रूप से नीति यही रही है कि विकास सभी का किन्तु तुष्टिकरण किसी का नहीं होना चाहिए। हमारे शीर्ष नेता अकसर कहा करते हैं कि हमारी पार्टी सिर्फ सरकार बनाने की राजनति नहीं करती है। राजनीति के पीछे हमारा मकसद सिर्फ समाज बनाना है। किसी भी मामले में भाजपा की सक्रियता जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे ‘आप’ का पर्दाफाश होता जा रहा है।
‘आप’ के नेता सबसे अधिक बात करते हैं कि उन्होंने दिल्ली में स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है जबकि ‘आप’ के नेताओं के परिवारों के अधिकांश लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज ही नहीं करवाते हैं, ‘मोहल्ला क्लीनिक’ में जाना तो बहुत दूर की बात है। कहने का आशय यह है कि यदि दिल्ली में स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति आई है तो ‘आप’ के लोग पूरी तरह सरकारी अस्पतालों में इलाज क्यों नहीं करवाते हैं? कोरोना काल में जेल में बंद दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन एवं उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का इलाज प्राइवेट अस्पताल में हुआ।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल स्वयं बेंगलुरु जाते हैं इलाज करवाने। इसी प्रकार ‘आपियों’ के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते ही नहीं हैं। दिल्ली के सरकारी स्कूल जब इतने अच्छे बन चुके हैं तो ‘आपिये’, अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिए अपने द्वारा बनवाये गये सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं भेजते हैं? भाजपा ने ‘आप’ के इसी झूठ, फरेब एवं पाखंड से जनता को अवगत कराने का काम किया है। जब लोग ‘आप’ के झूठ एवं पाखंड को समझने लगे हैं तो ‘आपियों’ की बेचैनी एवं सिरदर्दी बढ़ने लगी है।
नैतिकता की बात की जाये तो ‘आपिये’ जनता में पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं। दिल्ली एवं पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री जेल में हैं। ‘आप’ का एक पार्षद दिल्ली में दंगा भड़काने के गंभीर आरोप में जेल में है। ‘आप’ की नजर में देश का सबसे बेहतरीन शिक्षा मंत्री शिक्षा विभाग के बजाय शराब मंत्री के रूप में ज्यादा प्रचलित हो रहे हैं।
जिस राज्य का शिक्षा मंत्री शिक्षा से अधिक शराब मंत्री के रूप में काम करना चाहे तो उस राज्य की जनता सिर्फ भगवान को याद कर अपने को संतुष्ट कर सकती है। बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, डीटीसी, आबकारी नीति, रोजगार, यमुना की सफाई, महिला सुरक्षा, झुग्गी बस्तियों की समस्याओं आदि को लेकर भाजपा ने जब जनता को बताना शुरू किया तो ‘आपियों’ को जैसे सांप सूंघ गया है।
जब ‘आपियों’ के वश का कुछ नहीं होता तो कहना शुरू कर देते हैं कि केन्द्र सरकार हमें काम ही नहीं करने देती। इसी को कहते हैं ‘नाच न आवे, आंगन टेढ़ा’ यानी जब नाचना न आये तो आंगन को ही टेढ़ा बता दिया जाये। दिल्ली के उप राज्यपाल ने जब कहा कि वे सिर्फ उन्हीं फाइलों को आगे बढ़ायेंगे, जिस पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर होंगे। उप राज्यपाल महोदय के इस फरमान से ‘आपियों’ को सांप सूंघ गया जबकि वास्तविकता यह है कि ‘सांच को आंच’ किस बात की? मुख्यमंत्री की नीयत में कोई खोट नहीं है तो उन्हें अपनी ही सरकार की फाइलों पर हस्ताक्षर करने में क्या परेशानी है?
‘आपियों’ की एक विचित्र आदत यह है कि वे बिना सोचे-समझे किसी पर कुछ भी आरोप लगा देते हैं और कुछ भी बोल देते हैं किन्तु जब कानून का डंडा पड़ता है तो तिलमिला कर भागने लगते हैं और घूम-घूम कर माफी मांगने लगते हैं। हमारी सनातन संस्कृति में इसी को कहा गया है, थूक कर चाटना, मगर इन बातों का कुछ असर उन्हीं लोगों पर होता है जिनमें कोई नैतिकता बची होती है। ‘आपिये’ तो ‘छिछोरपन’ की सारी सीमाएं पार कर चुके हैं।
एक तरफ ‘आपिये’ जहां सिर्फ पाखंड मंें लगे हैं, वहीं भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में ‘सेवा पखवाड़ा’ (17 सितंबर से 2 अक्टूबर) के माध्यम से गांव-गांव, गली-गली एवं झुग्गी बस्तियों में सेवा कार्यों के द्वारा आम लोगों के कल्याण में लगी है। सेवा कार्यों के माध्यम से ‘आप’ के झूठ का पर्दाफाश तो हो ही रहा है, साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा चलाई गई जन कल्याणकारी योजनाओं से जनता अवगत हो रही है और उससे लाभान्वित भी हो रही है।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि दिल्ली भाजपा ने जैसे को तैसे की तर्ज पर ‘आप’ के झूठ, फरेब एवं पाखंड को जनता के समक्ष उजागर कर दिया है। ‘आपियों’ की समझ में अब यह नहीं आ रहा है कि आख्ािर अब वे और कितना झूठ बोलें किन्तु यह भी अपने आप में पूरी तरह सत्य है कि झूठ के पांव अधिक दिनों तक टिक नहीं पाते हैं। चूंकि, ‘आप’ के झूठ के पांव अब उखड़ चुके हैं, इसलिए वह अब ‘सकते’ एवं ‘सदमें’ में है।
– हिमानी जैन