
माँ बमलेश्वरी मंदिर से जुड़े इतिहास के अनुसार, डोंगरगढ़ का प्राचीन नाम कामख्या नगरी हुआ करता था।
छत्तीसगढ़, अनादिकाल से लेकर आज तक, शक्ति और मातृरूप के प्रतीक के तौर पर सबसे अधिक प्रसिद्ध रहा है। तभी तो यहां आदि-अनादि काल में स्थापित शक्तिपीठ मंदिरों के अलावा भी माता के ऐसे अनेकों सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं जो उस काल के साक्षी हैं। यहां के ऐसे सैकड़ों प्रसिद्ध और सिद्ध देवी मंदिरों की स्थापना को लेकर अलग-अलग प्रकार की चमत्कारिक किंवदंतियां और पौराणिक साक्ष्य आज भी उपलब्ध हैं।
प्राचीनकाल में स्थापित किये गये छत्तीसगढ़ के इन मंदिरों में से रायपुर में देवी महामाया मंदिर, चंद्रपुर में देवी चंद्रहासिनी मंदिर, डोंगरगढ़ में देवी बमलेश्वरी मंदिर, रतनपुर का महामाया देवी मंदिर, महासमुन्द जिले में खल्लारी माता मंदिर और दंतेवाड़ा में देवी दंतेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर जैसे और भी कई मंदिर आज भी हैं।
छत्तीसगढ़ के इन्हीं सैकड़ों प्रसिद्ध और प्रमुख देवी मंदिरों में से एक माता बमलेश्वरी मंदिर, प्रदेश की राजधानी रायपुर से करीब 105 किलोमीटर और राजनादगांव से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर है।
प्राचीनकाल के डोंगरगढ़ नगर में स्थित मां बमलेश्वरी के इस मंदिर को कुछ जानकार मात्र दो हजार साल के इतिहास से जोड़कर देखते हैं। लेकिन, इस मंदिर का पौराणिक महत्व और इसकी विशेषताएं, इसके उस अनादिकाल के इतिहास और महत्व को दर्शाती हैं जब इस धरती पर देवी सति की देह से, उनके विभिन्न अंग, वस्त्र और आभूषण गिरे था।
माँ बमलेश्वरी मंदिर के विषय में स्थानीय लोगों तथा कुछ अन्य जानकारों का मानना है कि यह एक शक्तिपीठ मंदिर है, जबकि कुछ लोग यह मानते हैं कि यह एक जागृत और सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है।
यदि हम मां बमलेश्वरी मंदिर के प्राचीन इतिहास की बात करें तो सबसे पहले यहां यह समझना होगा कि जिस स्थान पर यह मंदिर स्थापित है वह उस समय का डोंगरगढ़ नगर है जो प्राचीनकाल में वैभवशाली कामाख्या नगरी के नाम से जानी जाती थी। उस दौर में यहां राजा वीरसेन का शासन हुआ करता था। लेकिन, जैसे-जैसे इतिहास करवट लेता गया, वही कामाख्या नगरी डोंगरी और फिर आज के इस डोंगरगढ़ नाम में बदल गई।
इसके अलावा, वैदिक और पौराणिक काल से ही डोंगरगढ़ सहीत संपूर्ण छत्तीसगढ़ क्षेत्र, विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है।
आज भी यहां हजारों वर्ष पुराना माँ बमलेश्वरी का वह मंदिर है, जिसके कारण इस नगर की पहचान होती है। डोंगरगढ़, पहाड़ों से घिरा हुआ एक ऐसा नगर है जो मुख्य रूप से एक धार्मिक पर्यटन के रूप में प्रसिद्ध है, और मां बमलेश्वरी देवी का यह जागृत शक्तिपीठ मंदिर भी इन्हीं में से एक पहाड़ी पर है।
माँ बमलेश्वरी का यह मंदिर, यहां की करीब 16 सौ फीट की ऊंचाई वाली एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 11 सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लेकिन, अगर आप यहां सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ हैं, या फिर उड़नखटौला की सवारी का आनंद लेना चाहते हैं तो उसके लिए भी यहां यह सुविधा उपलब्ध है।
यहां माता बमलेश्वरी के दो स्वरुप विराजमान हैं, जिनमें से प्रमुख मंदिर पहाड़ी की चोटी पर, बड़ी बमलेश्वरी माता के नाम से, जबकि दूसरा, छोटी बमलेश्वरी माता का मंदिर है जो पहाड़ी पर चढ़ाई के शुरूआत में ही देखने को मिल जाता है। बमलेश्वरी माता के मुख्य मंदिर के अलावा यहां शीतला माता, बजरंगबली मंदिर और नाग वासुकी मंदिरों के अलावा भी कई देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं।
माँ बमलेश्वरी यहां साक्षात महाकाली के रुप में विराजमान हैं। कहा जाता है कि मां बमलेश्वरी उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की कुल देवी भी है।
माँ बमलेश्वरी मंदिर से जुड़े इतिहास के अनुसार, डोंगरगढ़ का प्राचीन नाम कामख्या नगरी हुआ करता था। उस समय यहां के राजा वीरसेन की अपनी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ती की कामना के लिए राजा वीरसेन ने महिषमती पुरी में, यानी मध्य प्रदेश के मंडला नगर में भगवान शिव और देवी भगवती दुर्गा की आराधना की। इसके एक वर्ष बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने उस बालक का नाम मदनसेन रखा।
भगवान शिव और मां दुर्गा की कृपा से राजा वीरसेन को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, इसी भक्ति भाव से प्रेरित होकर राजा वीरसेन ने अपनी कामख्या नगरी में स्थित मां बमलेश्वरी के छोटे आकार वाले मंदिर का पुननिर्माण करवा कर उसे एक भव्य आकार और विस्तार वाला मंदिर बनवा दिया।
आगे चल कर राजा वीरसेन के उसी पुत्र ने यानी राजा मदनसेन ने कामख्या नगरी का राजपाट संभाला और फिर राजा मदनसेन के पुत्र और राजा वीरसेन के पौत्र राजा कामसेन ने भी कामख्या नगरी पर राज किया। कहा जाता है कि बाद में राजा कामसेन के नाम पर ही कामख्या नगरी का नाम बदल कर कामावती पुरी कर दिया गया था।
हालांकि अब वही कामावती पुरी डोंगरगढ़ के नाम से जानी जाती है। इसके अलावा यहां यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में माता को बिमलाई देवी के रूप में पूजा जाता था, लेकिन आज वही बमलेश्वरी देवी के नाम से जानी जाती हैं।
चैत्र और शारदीय नवरात्र के अवसरों पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना की ज्योति प्रज्वलित कर के जाते हैं।
माँ बमलेश्वरी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दर्शनों के लिए सुबह 4 बजे ही द्वार खुल जाते हैं। जबकि, दोपहर में 1 से 2 बजे के बीच पट बंद किया जाता है। दोपहर 2 बजे के बाद इसे रात के 10 बजे तक दर्शन के लिए खोल दिया जाता है। नवरात्र के अवसर पर ये मंदिर 24 घंटे खुला रहता है।
चैत्र और आश्विन माह में पड़ने वाले दोनों ही नवरात्र के अवसरों पर, यहां करीब दस लाख लोग हर साल आते हैं। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि माँ बमलेश्वरी सबकी इच्छाएं पूरी करती है और मां के चरणों में हर समस्या का निदान भी हो जाता है। मां के चरणों में की जाने वाली आराधना और प्रार्थना का अद्भूत फल मिलाता है। यही कारण है कि डोंगरगढ़ में स्थित मां बमलेश्वरी का यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है।
कोरोनाकाल के संकट को देखते हुए श्री बमलेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति ने सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु विशेष पूजा-अर्चना के साथ-साथ, मुख्यमंत्री सहायता कोष में ग्यारह लाख रुपये की राशि जमा करवा कर एक मिसाल कायम की है।
भोजन व्यवस्था – श्री बमलेश्वरी मंदिर समिति के माध्यम से यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए पहाड़ी के ऊपर मंदिर प्रांगण में मात्र 10 रुपये के कूपन में भंडारा प्रसाद की विशेष व्यवस्था है। इसके अलावा यहां आने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा कई प्रकार से दान भी दिये जाते हैं। श्रद्धालुजन चाहें तो वे यहां इक्यावन सौ रुपये (5,100) की दान राशि देकर एक दिन का भंडारा भी प्रायोजित कर सकते हैं।
यहां का मौसम – छत्तीसगढ़ राज्य के डोंगरगढ़ में स्थित माता बमलेश्वरी देवी के इस मंदिर सहीत संपूर्ण छत्तीसगढ़ क्षेत्र में घूमने जाने के लिए सही मौसम जून से मार्च के बीच को होता है। लेकिन, अगर आप यहां अक्टूबर से मार्च के बीच जाते हैं तो यहां का तापमान और भी सुहावना होता है।
कहां ठहरें – माता बमलेश्वरी के दरबार में आने वाले भक्तों के लिए यहां श्री बमलेश्वरी मंदिर समिति के माध्यम से संचालित धर्मशाला के अलावा भी अनेकों छोटे-बड़े निजी होटल और धर्मशालाओं में ठहरने की अच्छी और हर बजट के अनुसार व्यवस्था देखने को मिल जाती है।
कैसे पहुंचे – मां बम्लेश्वरी का यह मंदिर जिला मुख्यालय राजनांदगांव से 40 किमी की दूरी पर, डोंगरगढ़ नामक प्राचीन कस्बे में, और रायपुर-नागपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर महाराष्ट्र की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक तहसील मुख्यालय है।
अगर आप यहां रेल मार्ग से पहुंचना चाहते हैं तो हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर यह स्थान डोंगरगढ़ रेलवे जंक्शन के नाम से है।
सड़क मार्ग से यहां तक पहंुचने के लिए छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, राजनांदगांव तथा आस-पास के सभी शहरों और कस्बों से नियमित बस सेवा और टैक्सियां उपल्बध हो जाती हैं। इसके अलावा जिला मुख्यालय से हर 10 मिनट में डोंगरगढ़ के लिए बस सेवा है।
अगर आप यहां हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो उसके लिए भी यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा राज्य की राजधानी रायपुर में है जहां से मंदिर की दूरी करीब 105 किलोमीटर है।
– अजय सिंह चौहान