
प्रधानमंत्री मोदी जी के विरोधी भी दबी जुबान से यह बात मानते हैं कि उनकी आलोचना हम लोग गाहे-बगाहे भले ही करते रहते हैं किन्तु वे पूर्ण रूप से राष्ट्र की सेवा-साधना में लगे हैं।
सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ही प्रकृति सत्ता ने सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के बीच समन्वय, संतुलन और तालमेल बनाये रखते हुए हर युग में देवताओं-राक्षसों एवं धर्मी-अधर्मी के रूप में ऊर्जा का संतुलन करते हुए सृष्टि की निरंतरता बनाई हुई है जिसे हम सतयुग, द्वापर और त्रेतायुग के नाम से जानते हैं परंतु आज के चैथे युग में जिसे हम कलयुग कहते हैं, स्वार्थी और निःस्वार्थी के रूप में ऊर्जा का संतुलन किया हुआ है।
यह भी सत्य है कि जब-जब इस ब्रह्मंड में नकारात्मक ऊर्जा का बोलबाला बढ़ता है। प्रकृति सत्ता सकारात्मक ऊर्जा के रूप में किसी न किसी दिव्य पुण्यात्मा के रूप में अवतरित होती है। अष्ट्राव्रक, राजा दशरथ, भगवान श्रीराम जी, भगवान श्रीकृष्ण जी, संत कबीर जी, भगवान श्री महावीर जी, भगवान बुद्ध जी, राजा विक्रमादित्य जी तथा अन्य अनगिनत पुण्य और पवित्र आत्माओं ने इस धरती पर जन्म लेकर न केवल मानव जाति का लोक कल्याण एवं उद्धार किया है बल्कि नकारात्मक ऊर्जाओं को ध्वस्त भी किया है और विश्व को ज्ञान-विज्ञान, योग, आयुर्वेद आदि के माध्यम से भारत का मान-सम्मान चरम सीमा पर बनाये रखा है इसलिए समय-समय पर या यूं कहिए कि प्राचीन काल से भारत में पुण्य और पवित्र आत्माओं का अवतरण होता रहा है और भारत इसीलिए सोने की चिड़िया कहलाकर, विश्व का नेतृत्व और मार्गदर्शन भी करता रहा है।
आज की परिस्थितियों में विश्व एक ऐसे मुहाने पर खड़ा है जहां मानवता को ताक पर रखकर विकास के नाम पर विध्वंसक और विनाशकारी शक्तियां स्वार्थवश पूरे ब्रह्मंड के अस्तित्व को खतरे में डाले हुए हैं। इन सभी को हम नकारात्मक ऊर्जा के रूप में संबोधित कर सकते हैं। अब आखिरी प्रश्न यह उठता है कि इन सभी आशंकाओं का समाधान और निवारण कौन, कैसे और कब तक कर पायेगा? गहन चिंतन और मंथन का विषय है।
वैश्विक महाशक्तियों द्वारा विकास के नाम पर जिस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों का शोषण हुआ है और अभी भी हो रहा है, वह न केवल चिंतनीय है बल्कि उसमें तुरंत सुधार की आवश्यकता है। प्रकृतिवादी- मानवतावादी सोच पर आधारित विकास को ही केवल विकास माना जाना चाहिए न कि अर्थ पर आधारित विकास को आधार बनाना चाहिए।
आज पूरे विश्व में जिस प्रकार अर्थ के द्वारा, अर्थ के लिए और अर्थ से शोषण-दोहन जिस चरम सीमा पर पहुंच चुका है वह इस ब्रह्मंड के अस्तित्व के लिए खतरा बन चुका है। अर्थ और अपने वर्चस्व की होड़ में न चाहते हुए भी मानवतावादी विचारधारा घुटती जा रही और शोषित होती जा रही है। जिसका दोहन होने पर अर्थ का लाभांश वैश्विक शक्तियों को ही प्राप्त होता रहता है।
विश्व के परिपे्रक्ष्य में एक सिरे से दूसरे सिरे तक गहन अनुसंधान कर यह निष्कर्ष निकलता है कि इन सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए भारत भूमि पर जन्मे भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का अवतरण हो चुका है। यह सोचना और कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि जिस प्रकार पिछले दस वर्षों में विश्व में भारत की पहचान, विचारधारा, ज्ञान, क्षमताएं इत्यादि पुनः विश्व पटल पर स्थापित और स्वीकार्य हुई हैं। यह श्रेय केवल और केवल माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी को ही जाता है।
हालांकि, नकारात्मक शक्तियां आज भी उनके विरोध में कोई कसर नहीं छोड़तीं क्योंकि एक तो उन्होंने अपनी आंखों पर काला चश्मा लगाकर चीजों को देखना जारी रखा हुआ है और दूसरों के पास न तो कोई ठोस दूरदर्शिता लिए हुए विचारधारा है और न ही प्राचीन भारतीय धरोहरों का कोई ज्ञान। नकारात्मक लोगों का समस्याओं, जमीनी हकीकतों से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। बस केवल और केवल विरोध के लिए विरोध, सत्ता लोलुपता, स्वयं में केंद्रित विकास की विचारधारा और भ्रष्टाचारी योजनाओं से आमजन को भ्रमित और गुमराह कर अपनी रोटियां सेंकते रहना है।
श्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने बचपन से ही संघर्ष किया है, अपना घर त्यागा और संघ प्रचारक व संगठन महामंत्री (भाजपा) के रूप में देशभर में भ्रमण कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा की विचारधारा को न केवल प्रचारित-प्रसारित करने का काम किया अपितु राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रभक्ति की ज्वाला को और अधिक तेज करने का काम किया है। श्री नरेंद्र मोदी जी ने भाजपा के लौह पुरुष माननीय लालकृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई ‘रामरथ यात्रा’ में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में जब डाॅ. मुरली मनोहर जोशी ने ‘एकता यात्रा’ निकाल कर कश्मीर के लाल चैक पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया तो उसमें भी माननीय नरेंद्र मोदी जी ने प्रमुख सारथी के रूप में अपना योगदान दिया।
अटल जी के नेतृत्व में 2004 के लोकसभा चुनावों में गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए माननीय मोदी जी ने ‘शाइनिंग इंडिया’ अभियान को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। माननीय आडवाणी जी, माननीय जोशी जी एवं माननीय अटल जी के नेतृत्व में कार्य कर माननीय मोदी जी ने जमीनी हकीकतों और समस्याओं का अवलोकन करते हुए प्राचीन काल से आज तक भारत भूमि की धरोहरों का अध्ययन करते हुए और कुछ समय के लिए हिमालय पर्वत पर भी जाकर तप कर, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर राजनीतिक क्षेत्र में अपना सफल स्थान बनाया और आज विश्व की वैश्विक शक्तियां भी भारत के इस नेतृत्व की तरफ ध्यान लगाकर देखती, सुनती और समझती रहती हैं क्योंकि बाल्यकाल से ही श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जीवनशैली और कार्यशैली एक कर्म योगी की तरह जो दिन के 24 घंटे में से 18-20 घंटे बिना थके-हारे कार्यरत रहते हैं और वह भी सात्विकता के साथ अनुसरण किया और अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी है।
श्री नरेंद्र मोदी जी की विशेष कार्यशैली का अवलोकन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि वे बारीक से बारीक, छोटे से छोटे बिन्दु पर विचार कर गहन चिन्तन-मनन एवं अपने अनुभव के आधार पर लक्ष्य निर्धारित करते हैं, संकल्प लेते हैं और संपूर्ण शक्ति के साथ उस पर जूझ पड़ते हैं, कूद जाते हैं। विरोधियों के विरोध के बाद सब अवरोधों को लांघ कर निश्चित संकल्पित रह कर इच्छित परिणाम प्राप्त करते रहते हैं।
श्री नरेंद्र मोदी जी की सकारात्मकता का अंदाजा इस बात से भी मिलता है कि कोरोना काल में जब पूरी दुनिया घुटनों के बल लेट गई थी, उस समय भी मोदी जी भारतीय जनमानस को न सिर्फ सकारात्मक बनाये रखने में कामयाब रहे बल्कि अपनी प्राचीन धरोहरों एवं जीवन शैली की बदौलत देशवासियों को कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए प्रेरित किया।
कोरोनाकाल में जब मोदी जी देशवासियों से दीपक जलाने एवं घंटा बजाने की अपील करते थे तो लोग उसे एक टास्क के रूप में लेकर उसका अक्षरशः पालन करते थे। बात यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि लोग तो यहां तक कहने लगे थे कि मोदी जी आप कोई न कोई टास्क हमेशा देते रहिए। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि कोरोनाकाल में मोदी जी ने अपनी सकारात्मक ऊर्जा के द्वारा न सिर्फ लोगों को प्रेरित किया बल्कि आयुर्वेद एवं अपनी गौरवशाली प्राचीन जीवनशैली की तरफ अग्रसर कर करोड़ों लोगों के जान-माल की रक्षा की।
आज देश में जिस प्रकार परिवारवादी राजनीति का दौर हावी है। राजनेता एवं सक्षम लोग अपने घर-परिवार एवं रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने में लगे हैं। ऐसे में अधिकांश देशवासियों को इस बात का पता नहीं है कि आखिर प्रधानमंत्री के परिवार में कितने सदस्य हैं और वे लोग क्या करते हैं? बारह साल तक गुजरात का मुख्यमंत्री और आठ साल से प्रधानमंत्री रहने के बावजूद राष्ट्र सेवा एवं राष्ट्रभाव के वशीभूत होकर प्रधानमंत्री ने यदि अपने परिवार के सदस्यों को अभी तक कोई लाभ नहीं पहुंचाया तो आज के घोर स्वार्थी युग में इससे बड़ा त्याग और तपस्या क्या हो सकती है? आज के दौर में ऐसी पुण्य आत्मा को अवतरित पुरुष नहीं तो और क्या कहा जायेगा?
प्रधानमंत्री मोदी जी के विरोधी भी दबी जुबान से यह बात मानते हैं कि उनकी आलोचना हम लोग गाहे-बगाहे भले ही करते रहते हैं किन्तु वे पूर्ण रूप से राष्ट्र की सेवा-साधना में लगे हैं। पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी अकसर मोदी जी को आराम करने की सलाह देते रहते थे क्योंकि उन्हें यह अच्छी तरह पता थे कि मोदी जी बिना आराम किये लगातार काम में लगे रहते हैं। आखिर इसी को तो कहते हैं राष्ट्र के प्रति सच्ची सेवा एवं साधना। आज मोदी जी की बात देशवासी इसलिए सुनते एवं मानते हैं क्योंकि लोगों से वे जो भी कहते हैं, उसे वे पहले स्वयं करके दिखाते हैं। जब लोगों को यह लगता है कि हमारे प्रधानमंत्री जी देश के लिए इतना परिश्रम कर रहे हैं तो हमारी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। इसी को कहते हैं स्वतः प्रेरित होकर कार्य करना। यही कार्य तो प्रधानमंत्री जी ने किया है।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)
(पूर्व ट्रस्टी श्रीराम-जन्मभूमि न्यास एवं पूर्व केन्द्रीय कार्यालय सचिव, भा.ज.पा.)