
गुजरात और राजस्थान की सीमा पर अरावली पर्वत श्रृंखला में और गुजरात राज्य के बनासकांठा जिले में पड़ने वाला अंबाजी शक्तिपीठ देवी दुर्गा का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। अरावली पर्वत श्रृंखला में होने के कारण इसे ‘‘अरासुर माता’’ के नाम से भी पहचाना जाता है। मान्यता है कि इस शक्तिपीठ मंदिर में देवी अंबाजी अनादिकाल से अपने जग्रत रूप में निवास करती हैं। इसीलिए यह स्थान हिन्दू धर्म के लिए सबसे प्रमुख और सबसे बड़े तीर्थों में से एक है।

गुजराती के दिल की धड़कन –
मां भवानी का यह शक्तिपीठ मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध और विशेष मंदिरों में स्थान रखता है। खास तौर पर विदेशों में बसे गुजराती समुदाय और एनआरआई समुदाय के लिए यह मंदिर विशेष आस्था और शक्ति उपासना का महत्व रखता है। इसलिए अंबाजी का यह शक्तिपीठ मंदिर गुजरात और गुजरातियों के दिल की धड़कन के रूप में माना जाता है।
मंदिर की वास्तुकला –
अंबाजी के वर्तमान मंदिर की वास्तुकला आाकर्षक और नक्काशीदार है। मुख्य मंदिर का आकार इसके विशाल आकार वाले सभा मंडप से थोड़ा छोटा है। इसके गर्भ गृह, सभामंडप, प्रवेश द्वार तथा विशाल आकार वाले आंगन सहित अन्य सभी क्षेत्रों में बहुत ही सुन्दर, आकर्षक, नक्काशीदार तथा कलात्मक कारीगरी देखने को मिलती हैं।

जारी है जिर्णोद्धार –
मंदिर के जिर्णोद्धार का कार्य वर्ष 1975 में शुरू किया गया था। जिसके अंतर्गत यहां आवश्यकता के अनुसार और कई सारे दूसरे नये निर्माण के कार्य किये गये हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार प्राचीन निर्माण शैली में बना है इसलिए यह आकार में भव्य होने के साथ-साथ कलात्मक और आकर्षक नजर आता है।
मंदिर के पीछे की ओर प्राचीन काल का पवित्र मानसरोवर तालाब भी मौजूद है। कहा जाता है कि इस सरोवर का निर्माण अहमदाबाद के श्री तपिशंकर ने वर्ष 1584 से 1594 के मध्य करवाया था। इस सरोवर सहीत इस मंदिर के कई हिस्सों में आज भी जिर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण का कार्य जारी है।
मंदिर का इतिहास –
श्री अंबाजी मंदिर की वर्तमान संरचना के निर्माण बारे में माना जाता है कि 14वीं शताब्दी में वल्लभी के सूर्यवंशी राजा अरुण सेन ने करवाया था। लेकिन अगर इस मंदिर के इससे भी पूर्व के इतिहास की बात करें तो पता चलता है कि 1200 ईसवी में यहां इससे भी भव्य मंदिर हुआ करता था जिसको मुगलों ने लुटपाट के बाद नष्ट कर दिया था।
स्वर्ण शिखर कलश –
अंबाजी का मंदिर संगमरमर के सफेद पत्थरों से बना हुआ है। यह मंदिर कुल 103 फूट ऊंचा है। इसके शिखर के ऊपर लगे मुख्य कलश का वजन 3 टन से अधिक बताया जाता है। जबकि इस पर लगे छोटे-बड़े अन्य स्वर्ण कलश की संख्या कुल 358 है। मंदिर के मुख्य शिखर की कुल 61 फीट की ऊंचाई को स्वर्ण शिखर बनाया जा रहा है।
इस पर लगाने के लिए लगभग 140 किलोग्राम शुद्ध स्वर्ण धातु यानी शुद्ध सोने का उपयोग किया जा रहा है। सोने की यह परत मंदिर की कुल 103 फूट ऊंचाई के ऊपरी भाग में, यानी लगभग आधे भाग से शिखर के कलश तक लगाई गई है।
मंदिर में लगने वाला यह सोना माता अंबाजी के सभी परमभक्तों ने अपनी स्वेच्छा से दान में दिया है जिसमें से अधिकतर वे भक्त हैं जो भारत से बाहर रहते हैं या जो एनआरआई हैं।
– अजय सिंह चौहान