
आश्चर्य है कि किसान धरने से उठने को तैयार नहीं हैं!
अपनी तमाम कमियों एवं आलोचनाओं के बावजूद किसी भी मुसीबत के वक्त जब लोगों को वर्दी की एक झलक दिख जाती है तो लोग अपने आप को सुरक्षित समझ लेते हैं। इस विश्वास को और अधिक बढ़ाने के साथ पुलिस को जनता के साथ दोस्ताना संबंध बनाने की आवश्यकता है। ग्रामीण भारत में खेती-बाड़ी और तमाम विवादों को लेकर लोगों में छोटे-बड़े झगड़े होते रहते हैं किन्तु देखने में आया है कि तमाम लोग पुलिस के पास जाने से घबराते हैं।
कभी-कभी देखने में आता है कि किसी मामले को सुलझाने के लिए यदि लोगों को थाने में बुलाया जाता है तो उनके मन में यह भय बना रहता है कि पुलिस दबाव बनाकर कहीं उलटे-सीधे समझौते पर हस्ताक्षर न करा ले या फिर चालान न कर दे। इस प्रकार की तमाम बातें लोगों के बीच चलती रहती हैं और आये दिन देखने-सुनने को मिलती भी रहती हैं।
पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह आम लोगों के मन से भय निकालने का कार्य करे और लोगों को यह एहसास कराये कि पुलिस ही उनकी वास्तविक मित्र है। किसी भी मुसीबत एवं लड़ाई-झगड़े में साथ खड़ी मिलेगी। वैसे भी इस तरह का माहौल किसी भी कीमत पर बनाये रखने की आवश्यकता है। समाज में सुख-शांति बनी रहे, उसके लिए ऐसा करना निहायत जरूरी है।
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उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा कर दी है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लेगी और संसद के आगामी सत्र में इसकी प्रक्रिया विधिवत पूरी कर ली जायेगी किन्तु इसके बावजूद किसान धरने से उठने को तैयार नहीं हैं। इससे यही संदेश जाता है कि दाल में कुछ काला है। निश्चित रूप से कुछ किसान किसी अन्य एजेंडे पर कार्य कर रहे हैं किन्तु देर-सवेर ऐसे किसान बेनकाब हो जायेंगे और उनका भंडाफोड़ होकर ही रहेगा।
– सुधीर मंडल, दरियागंज, दिल्ली