
गढ़ गणेश मंदिर जयपुर
जयपुर शहर की उत्तर दिशा में अरावली पर्वत श्रंखलाओं में से एक, नाहरगढ़ किले की पहाड़ी से सटी एक अन्य पहाड़ी पर ‘गढ़ गणेश मंदिर’ दुनियाभर में इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि पूरे संसार में यही एक ऐसा मंदिर है जिसमें विराजित भगवान गणेश की प्रतिमा की सूंड नहीं है। यानी इसमें गणेश जी की प्रतिमा बिना सूंड की ही है।
सनातन परंपरा में बिना सूंड की इस गणेश जी की प्रतिमा के बारे में पौराणिक घटना के अनुसार गणेश जी को बाद में हाथी का मस्तिष्क लगाया गया था, यानी उनकी वो संूड, जिसे हम देखते आ रहे हैं वह उनके जन्म के समय की नहीं है। क्योंकि इसके पहले यानी कि अपने बाल रूप में या बाल्यावस्था में गणेश जी बिना सूंड के ही जन्मे थे, और इस मंदिर में भगवान गणेश को उसी बाल रूप में दर्शाया गया है, इसलिए यहां उनकी प्रतिमा बिना सूंड की ही है।
प्रत्येक बुधवार को यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कई हजार तक पहुंच जाती है। गढ़ गणेश मंदिर में नियमित आने वाले भक्तों का मानना है कि जो कोई भी श्रद्धालु लगातार सात बुधवार इनके दर्शन कर लेता है गढ़ गणेश जी उसकी हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी पर यहां पर भव्य मेला आयोजित होता है और इस अवसर पर यहां हर दिन करीब पचास हजार से एक लाख श्रद्धालु गणेश जी के दर्शन करने पहुंचते हैं।
इस मस्जिद में थी शुद्ध सोने से बनी देवी सरस्वती की मूर्ति लेकिन…
सनातन परंपरा के अनुसार गणेश जी प्रथम पूज्य देवता हैं इसलिए किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना में सबसे पहले उन्हीं को आमंत्रित किया जाता है। जयपुर के इस ‘गढ़ गणेश मंदिर’ के बारे में सबसे प्रसिद्ध बात ये है कि जयपुर के आसपास और खासकर राजस्थान के अधिकतर सनातन प्रेमी अपने परिवार या कुटुंब में आयोजित होने वाले वैवाहिक कार्यक्रमों का सबसे पहला न्यौता या पत्रिका यहां आकर भगवान गणेश की प्रतिमा के चरणों में रखते हैं।
अधिकतर लोग यही मानते हैं कि इस मंदिर की स्थापना सन 1740 ईसवी में की गई थी। लेकिन, कई लोग ये भी मानते हैं कि यह मंदिर यहां पौराणिक काल में भी स्थापित हुआ करता था। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने तो बस इस स्थान पर उसी प्राचीन मंदिर के अवशेषों का एक बार फिर से जिर्णोद्धार करवाया था।
यह मंदिर जयगढ़ और नाहरगढ़ के किले के पास की एक पहाड़ी पर किसी गढ़ यानी किसी किले के समान ही बनवाया गया है इसलिए इस मंदिर को एक प्रकार से भगवान गणेश का किला अर्थात गढ़ कहा गया और उसके बाद से यह मंदिर गढ़ गणेश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसके जिर्णोद्धार कार्य के आरंभ होने के साथ ही महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने ‘अश्वमेघ यज्ञ’ का आयोजन किया था और उसी के बाद आज के इस जयपुर शहर की आधारशिला रखी थी।

इस मंदिर की दूसरी सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि इसमें भगवान गणेश की सवारी, यानी मूषकराज की एक नहीं बल्कि दो बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं, जबकि अन्य मंदिरों में तो सिर्फ एक ही मुसकराज होते हैं। दर्शनार्थी मूषकराज की इन प्रतिमाओं के कान में अपनी मन्नत मांगते हुए और कुछ कहते हुए देखे जा सकते हैं।
गढ़ गणेश मंदिर के गर्भगृह में स्थापित गणेशजी की इस प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह प्रतिमा दो भागों में निर्मित है, जिसमें से पहला भाग आंकड़े की जड़ से और दूसरा ‘अश्वमेघ यज्ञ’ की भस्म से निर्मित हुआ है। भगवान गणपति का प्रतिदिन दुग्ध अभिषेक और पंचामृत अभिषेक होता है। मंदिर के महंत के अनुसार गणेश चतुर्थी को प्रातः दुग्ध अभिषेक होता है और पत्र पुष्प माला से श्रृंगार होता है। और क्योंकि वे बाल रूप में हैं इसलिए इस दिन गणपति जी वस्त्र धारण नहीं करते हैं।
गढ़ गणेश मंदिर का प्राचीन और आधुनिक इतिहास एवं महत्व | Garh Ganesh Temple Jaipur
पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर तक जाने का रास्ता पूरी तरह से पक्का बना हुआ है और इसके दोनों तरफ पेड़-पौधे देखने को मिल जाते हैं। बारिश के मौसम में इस पूरे रास्ते में और गढ़ गणेश मंदिर के आसपास की हरियाली देखते ही बनती है इसलिए प्रकृति प्रेमी श्रद्धालु बारिश के मौसम में यहां सबसे ज्यादा आते हैं और यहां की हरियाली और शहरी की भीड़ से दूर एकांत और शांत वातावरण का अनुभव लेते हुए देखे जा सकते हैं।
गढ़ गणेश मंदिर के परिसर से पुराने जयपुर शहर का नजारा साफ-साफ देखा जा सकता है। इसके अलावा एक तरफ पहाड़ी पर नाहरगढ किला और दूसरी तरफ की पहाड़ी के नीचे की ओर जलमहल को साफ-साफ देखा जा सकता है।
यह मंदिर जयपुर शहर के बाहरी इलाके में गेटर रोड पर ब्रह्मपुरी में स्थित है। जयपुर के प्रमुख रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से भी इस मंदिर की दूरी करीब-करीब 6 किमी है। शहर के हर क्षेत्र से टैक्सी की सुविधा के अलवा लोकल सवारी भी आसानी से मिल जाती है।
– अजय सिंह चौहान