
कामाख्या शक्तिपीठ मंदिर (Kamakhya Shakti Peeth) असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी के पश्चिम में लगभग 8 किलोमीटर दूर ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) के किनारे नीलाचल नामक पर्वत पर स्थित है। माता सती के शक्तिपीठों में यह सबसे महत्वपूर्ण पीठ के रूप में माना जाता है। इसके ‘कामाख्या’ शक्तिपीठ के नाम के विषय में कहा जाता है कि संस्कृत भाषा में प्रेम को ‘काम’ कहा जाता है, और शायद इसी से इस शक्तिपीठ का कामाख्या नाम पड़ा है।
मान्यता है कि इस स्थान पर (Kamakhya Shakti Peeth) माता सती का योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या नामक महापीठ की उत्पत्ति हुई थी। यह भी माना जाता है कि देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता आज भी हर साल रजस्वला होती हैं। इसी प्रकार के अन्य अनेक चमत्कारी तथ्यों और मान्यताओं से भरपूर है कामाख्या शक्तिपीठ से संबंधित जानकारी।
सबसे पहले तो बता दें कि इस मंदिर के गर्भगृह में मूख्य रूप से देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि मूर्ति के स्थान पर यहां देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है। मंदिर के गर्भगृह में एक कुंड-सा आकार है, जिसमें सदैव पानी भरा रहता है। यह कुंड हमेशा फूल-पत्तियों से ढका रहता है।

‘अम्बुवाची’ शब्द संस्कृत से लिया गया शब्द है जिसका अभिप्राय पानी का वह स्थान जहां से थोड़ा-थोड़ा पानी बहता रहता है। असमियां भाषा में अम्बुवाची का ऊच्चारण अम्बुबाची या अम्बुबैसी भी किया जाता है। चैथे दिन मंदिर के द्वार खुलने पर यहां माता के दर्शनों के लिए भक्तों की लंबी-लंब़ी लाइनें लग जाती हैं। इस दौरान मंदिर में आये भक्तों को यही अम्बुवाची नामक वह विशेष गीला कपड़ा प्रसाद के रूप में दे दिया जाता है। मान्यता है कि माता के रज से भीगा यह कपड़ा प्रसाद के तौर पर मिलना किस्मत की बात होती है।
कामाख्या मंदिर (Kamakhya Shakti Peeth) को लेकर एक और कथा चर्चित है। इस कथा के अनुसार कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहां पर ही शिव और पार्वती के बीच प्रेम की शुरुआत हुई थी, इसलिए यह स्थान सती और शिव के मिलन का गुप्त स्थान है।
कामाख्या देवी को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहा जाता है। इसके पीछे मान्यता यह है कि यह देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है जो नियमानुसार प्रतिवर्ष रजस्वला होती है। यह सुनकर अधिकतर लोगों को अटपटा लग सकता है लेकिन कामाख्या देवी (Kamakhya Shakti Peeth) के भक्तों का मानना है कि हर साल जून के महीने में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है।
इस दौरान तीन दिनों तक यह मंदिर बंद हो जाता है और यहां मंदिर के आसपास अम्बूवाची नामक उत्सव मनाया जाता है जिसमें पश्चिम बंगाल समेत तिब्बत, बांग्लादेश, नेपाल अफ्रीका और अन्य विदेशी से सैलानियों के साथ तांत्रिक, अघोरी साधु और पुजारी इस मेले में शामिल होने आते हैं।
हालांकि देवी के रजस्वला होने की बात पूरी तरह आस्था से जुड़ी हुई मानी जा सकती है। जबकि इस आस्था से परे सोचने वाले बहुत से लोगों का कहना है कि पर्व के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) में सिंदूर की कुछ मात्रा डाली जाती है, जिसकी वजह से नदी का पानी लाल हो जाता है। जबकि कुछ लोगों का यह कहना है कि पशु बलि के दौरान उनके बहते हुए खून से इस नदी का पानी लाल हो जाता है।
कहा जाता है कि तंत्र साधनाओं में रजस्वला स्त्री और उसके रक्त का विशेष महत्व होता है इसलिए यह पर्व या कामाख्या देवी के रजस्वला होने का यह समय तंत्र साधकों और अघोरियों के लिए सुनहरा अवसर होता है।

यहां शक्ति के उपासक, तांत्रिक और साधक नीलांचल पर्वत क्षेत्र में साधना करके सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। इन शक्ति के उपासकों में महिलाओं की संख्या भी अच्छी खासी देखने को मिलती है। कामाख्या मंदिर (Kamakhya Shakti Peeth) को वाम मार्ग साधना के लिए सर्वोच्च पीठ का दर्जा दिया गया है। यहां वाम साधना का मतलब मातृत्वस्वरूप सर्वोच्च शक्ति की पूजा से है।
हालांकि यहां बारहो मास भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है, लेकिन, यहां जाने के लिए सबसे अच्छा समय दुर्गा पूजा के दौरान सितंबर-अक्टूबर के महीनों के बीच का कहा जा सकता है।
गुवाहाटी देश के लगभग हर भाग से रेल, सड़क और हवाई यात्रा से जुड़ा हुआ है। कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से मात्र 6 किलोमीटर दूर है। नार्थइस्ट का यह सबसे बड़ा और व्यस्त स्टेशन है, इसलिए यहां के लिए देश के लगभग हर भाग से प्रतिदिन के लिए रेल की सुविधा मिल जाती है। सड़क के रास्ते जाने के लिए भी यहां की बस सेवा में कोई समस्या नहीं है। इसके अलावा गुवाहाटी में ही एयरपोर्ट भी है, जहां नियमित उड़ाने की सुविधा है।
– अजय सिंह चौहान