कहते हैं समय आगे बढ़ता ही जाता है, फिर चाहे वो किसी वस्तु का हो या फिर किसी व्यक्ति का हो। वस्तु चाहे गाड़ी हो या गाड़ी का पहिया। और व्यक्ति चाहे आम हो या खास। खास आदमी खास होता जा रहा है और आम आदमी आम।
आम आदमी की बात आती है तो मुझे याद आया कि, मैंने कहीं सुना है कि भारत में आम तौर पर आम आदमी ही देखने को मिलता है। लेकिन, यहां मेरे अपने विचार इसके ठीक उल्टे हैं। रहा होगा कभी ऐसा कि भारत में आम तौर पर आम आदमी ही पाया जाता था। लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
क्योंकि अब तो जितने लोग उतने खास। बल्कि यूं कहें कि खासमखास। खास से मतलब- ये मेरा खास आदमी है, वो मेरा खास आदमी है। चाहे कोई व्यवसायी हो या राजनेता। पुलिस का सिपाही हो या फिर अभिनेता। किसी पाटी का मुखिया हो या देश का मुखिया हो। या फिर किसी भी दूश्मन देश के एजेंट के तौर पर काम करने वाले कुछ खास आदमी। हर किसी का एक न एक खासमखास तो होता ही है।
तो बात हो रही थी समय के आगे बढ़ने की। समय आगे बढ़ता ही जाता है। फिर चाहे वो किसी वस्तु का हो या फिर किसी व्यक्ति हो। और वो व्यक्ति चाहे नरेंद्र मोदी जैसा हो या फिर हो या राहुल गांधी जैसा।
वक्त चाहे जैसा भी चल रहा हो। वक्त के साथ चलने में ही भलाई होती है। अगर कोई व्यक्ति या वस्तु वक्त के साथ कदमताल नहीं कर पाता है तो उसे जंग लग ही जाता है। जैसे की गाड़ी हो या उसका पहिया। रूक गया तो जंग लग जाता है। नरेंद्र मोदी हो या राहुल गांधी। जंग लग ही जाता है।
अब आप सोच रहे होंगे कि नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी बीच में कहा से आ गये? तो बता दूं कि फिलहाल इन दोनों में से भी वक्त के साथ ठीक से कोई नहीं चल पा रहा है। दोनों ही जंग खाये हुए कबाड़ के समान लगते हैं।
अगर नरेंद्र मोदी वक्त के साथ चल रहे होते तो उन्हें इस उम्र में जाकर पीएम की कुसी नहीं मिलती, बल्कि बहुत पहले ही मिल जाती। इसलिए यहां मैं कह सकता हूं कि मोदी मेहनत वाले नहीं बल्कि किस्मत वाले हैं। ठीक है कि वे इस उम्र में पीएम बने हैं। लेकिन, उधर राहुल गांधी के बारे में भी तो यही कहा जा सकता है।
भले ही राहुल गांधी एक मेहनतकश इंसान हैं। मगर फिर भी वक्त के साथ चल रहे होते तो युवा अवस्था में रहते हुए ही वे युवा कहलाने का हक रखते। लेकिन उम्र के इस पड़ाव में आकर भी राहुल गांधी युवा बनने का दिखावा करते हैं और कुर्ते की बाजू ऊपर करते हुए एक्शन दिखाने का दम भरने की कोशिश करते हैं। जबकि सच तो ये है कि जिस उम्र में उन्हें देश का पीएम बन जाना चाहिए था उस उम्र में वे क्या कर रहे थे ये बात शायद किसी को नहीं मालूम।
उधर नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति को अब ये शोभा नहीं देता कि वे सिर्फ और सिर्फ कुर्सी से ही चिपके रहें और काम करते ही जायें। उन्हें भी चाहिए कि उम्र के इस मुकाम पर आकर भक्ति और भाग्य के भरोसे देश को छोड़ देना चाहिए। वैसे भी तो ये देश बंटवारे के बादे से भगवान भरोसे ही रहा है। तो भला भक्ति करने की इस उम्र में नरेंद्र मोदी अब किसी दुश्मन देश का या किसी विरोधी दल का या फिर किसी विरोधी व्यक्ति का क्या उखाड़ लेंगे? और अगर उखाड़ भी लेंगे तो उससे क्या हो जायेगा?
उधर राहुल गांधी भी तो देश को एक नये और अज्ञात मुकाम तक ले जाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर ही रहे हैं। ये ओर बात है कि उनकी उस मेहनत को उन्हीं की पार्टी के लोग फिलहाल किसी काम की नहीं मान रहे हैं। और अगर कुछ मानते भी हैं तो घोड़ा रूपी एक ऐसे पशु की भांति मानते हैं जो मालिक को अपनी पीठ पर बैठा कर एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर पहुंचाता रहता है और फिर घमंड के साथ सोचता है कि मैंने अपने मालिक का वो काम कर दिया है जिसके लिए वो मुझे भरपेट चारा खिलाता है।
लेकिन, देश की वो जनता जो उन्हीं की पार्टी से संबंधित है कम से कम उसे तो राहुल गांधी पर विश्वास होना ही चाहिए। लेकिन, अब फसोस तो इस बात का है कि ऐसा हो नहीं पा रहा है। बल्कि यहां ये भी कहा जा सकता है कि उनकी पार्टी के लोग अब न तो उन्हें मेहनती मान रहे हैं और ना ही उन्हें उस घोड़े की उपाधि दे पा रहे हैंजो दिन-रात दौड़-भाग करता रहता है।
ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि अब किसी लायक नहीं रहा राहुल गांधी का घमंड और घोड़े जैसी मेहनत का वो फल। क्योंकि दोनों ही जंग खाये हुए कबाड़ के समान लगते हैं।
– अजय सिंह चौहान