
भारतीय समाज में एक पुरानी कहावत है कि यदि किसी को मुफ्त में बैठकर खाने की आदत पड़ जाये तो वह कुछ करना नहीं चाहता है और वह जीवनभर बैठकर खाने की इच्छा रखता है। इसके अलावा एक बात यह भी कही जाती है कि ऋण लेकर घी पीने की भी प्रवृत्ति ठीक नहीं है। इस दृष्टि से देखा जाये तो चुनावों में मुफ्त में बहुत कुछ देने का वायदा किया जा रहा है किन्तु आम जनता को इन मुफ्तखोरी के वायदों से बचकर रहना होगा क्योंकि अंततोगत्वा मुफ्खोरी की आदत राष्ट्र एवं समाज के लिए घातक ही साबित होती है।
दिल्ली में यदि आम आदमी पार्टी इतने दिनों से सत्ता में बनी हुई है तो उसका एक मात्र कारण मुफ्त की रेवड़ी है किन्तु अब समय आ गया है कि मुफ्तखोरी की आदत को छोड़ा जाये और दिल्लीवासियों के लिए स्थायी रूप से रोजगार की व्यवस्था की जाये। इसी में राष्ट्र एवं समााज का कल्याण है।
राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार और अधिक बहुत जरूरी –
आजकल समाज में देखने में आ रहा है कि तमाम लोगों में राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रवाद का भाव निरंतर कम होता जा रहा है। लोग अपने तक सीमित होते जा रहे हैं जबकि आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीयताा का प्रचार-प्रसार और अधिक हो, जिससे लोगों में अपने घर-परिवार के पालन-पोषण के साथ-साथ राष्ट्र एवं समाज के प्रति भी कुछ अच्छा करने की भावना जागृत हो। इसके लिए सभी को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है और ऐसा करना सभी का नैतिक कर्तव्य भी है। बिना राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीयता के राष्ट्र और अधिक मजबूत नहीं हो सकता।
– देवेन्द्र कुमार