आजकल की राजनीति में देखने को मिल रहा है कि राजनीति करने लायक उन्हीं को माना जा रहा है जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं, जबकि असलियत यह है कि राजनीति में तमाम लोग अपनी आर्थिक क्षमता के दम पर पद एवं प्रतिष्ठा तो हासिल कर लेते हैं, किन्तु जब सब जगह पैसा खर्च करने की बात आती है तो पीछे हटने लगते हैं।
दरअसल, जो कार्यकर्ता जुनून में आकर किसी दल के लिए रात-दिन परिश्रम किये और पैसे नहीं कमा पाये, आज वे हाशिये पर खड़े हैं। ऐसे कार्यकर्ता अपने को कोसते हुए कहते हैं कि काश यदि उन्होंने भी पैसा कमाया होता तो राजनीति में शायद उनका भी कोई मुकाम होता।
कमोबेश यही स्थिति सभी दलों में है। धनबलियों को महत्व मिलने से जमीनी कार्यकर्ता घर बैठते जा रहे हैं जिसके कारण जमीनी संगठन खोखला होता जा रहा है।
– अजय कुमार, गाजियाबाद (उ.प्र.)