आजकल महाराष्ट्र की राजनीति में जिस प्रकार की राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिल रही है, उसकी जड़ों में वैचारिक एवं सैद्धांतिक भटकाव अधिक दिखाई दे रहा है। कभी-कभी ऐसा करना सत्ता की
मजबूरी तो हो सकती है किन्तु पार्टियों के नेता एवं कार्यकर्ता जिस प्रकार के वातावरण में रहे होते हैं, उसी में रहने की उनकी आदत बन जाती है।
विचारधारा एवं सिद्धांतों को छोड़कर यदि दूसरी धारा में बहना होता है तो बहुत कम लोग अपने आप को एडजस्ट कर पाते हैं। कुछ इसी प्रकार की स्थिति आजकल महाराष्ट्र की राजनीति में देखने को मिल रही है। चूंकि, शिवसेना पूर्णरूप से हिंदूवादी दल रही है। शिवसेना संस्थापक स्व. बाला साहेब ठाकरे हिंदुत्व के प्रतीक माने जाते थे।
हिंदुत्व की जब भी बात आती थी, बाला साहेब का नाम इस मामले में सबसे पहले लिया जाता था किन्तु जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एनसीपी एवं कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई तो ज्यादातर शिव सैनिकों को यह बात रास नहीं आई।
महाराष्ट्र में जो कुछ देखने को मिल रहा है, यह उसी का नतीजा है। अतः किसी भी दल के लिए अपनी विचारधारा एवं सिद्धांतों से समझौता करना इतना आसान नहीं होता।
– श्रुति सिंह, वेस्ट विनोद नगर (दिल्ली)