
जैसे कि हम सभी जानते हैं कि, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसानों के द्वारा की गई हिंसा के बाद जैसे ही शाम तक आंदोलन कमजोर पड़ते दिखा तो न सिर्फ दिल्ली में बैठे उनके आका बल्कि देश और दुनिया के करीब-करीब हर हिस्से में बैठे उनके निवेशकों के चेहरे मुरझाने लग गये थे।
आंदोलन कमजोर पड़ते देख अचानक जब महान किसान नेता राकेश टिकैत जी के आंसू बहने लगे। टिकैत जी के आंसू बहने से इस आंदोलन में एक बार फिर से नई जान आ गई। बस फिर क्या था? एकाएक ऐसा लगने लगा मानो वर्षों से जारी सूखे की मार झेल रहे इक्का-दूक्का किसानों पर, इंद्रदेव प्रसन्न हो गये हों। आंदोलन पर खर्च करने वाले और अगुवाई करने वाले उन तमाम लोगों के चेहरों पर फिर से वही मुस्कान लौट आई।
लेकिन, अगले ही पल जब रिहाना, ग्रेटा और मिया खलिफा जैसी कुछ जानी मानी और दुनियाभर में मशहूर ऑनलाइन खेती करने वाली विदेशी महिला कृषकों का भी सपोर्ट इस आंदोलन को खुले दिन से मिल गया तो इन बेचारे आंदोलनकारियों को अचानक ऐसा लगा मानों ये आंदोलन अब सफल हो ही गया समझो।
लेकिन, ये क्या? इन किसानों के चेहरे ठीक से मुस्कुरा भी नहीं पाए थे कि फिर उदास भी हो गये। धरने पर बैठे कई किसानों को तो ऐसा लगने लगा मानो सारी की सारी खेती ही उजड़ गई हो। कई किसानों के मुह से आह निकलते हुए भी सुना गया, और कुछ किसान योद्धा तो सीधे-सीधे कहने लगे कि अब कुछ नहीं बचा जीवन में।
दरअसल, किसान योद्धाओं के बीच अचानक फैली इस निराशा के पलों का कारण ये था कि जब वहां मौजूद कुछ पढ़े-लिखे और समझदार युवा किसानों ने अपने नेता श्रीमान राकेश टिकैत जी को ये बताया कि अभी-अभी हमारे आंदोलन के पक्ष में अमेरिका से भी कुछ विश्व प्रसिद्ध महिला किसानों ने ट्वीटर के माध्यम से समर्थन की आवाज उठाई है तो इस पर राकेश टिकैत जी ने तपाक से कहा कि भाई, ये तो बहुत बड़ी खुशी की बात है। लेकिन ये कौन-सी महिला किसान हैं मुझे भी तो इनके बारे में बताओ?
इसपर वहां मौजूद राकेश टिकैत जी के पढ़े-लिखे सलाहकारों में से एक ने रिहाना, ग्रेटा और मिया खलिफा जैसी ऑनलाइन खेती करने वाली विश्व प्रसिद्ध महिला किसानों के नाम बताये तो टिकैत जी फूले नहीं समा रहे थे। बस फिर क्या था। टिकैत साहब ने तपाक से इन महिला किसानों के बारे में अधिक से अधिक जानकारियां लेनी चाही तो वहां मौजूद कई पढ़े-लिखे और समझदार नौजवान, जो कि राकेश टिकैत जी का कुछ ज्यादा ही आदर और सम्मान करते थे उनमें से कईयों के सिर तो श्रीमान टिकैत जी के सम्मान में झूक गये।
हालांकि, वहां मौजूद किसानों के कुछ नौजवान बच्चे इन विश्व प्रसिद्ध महिला किसानों के बारे में जैसे-तैसे श्रीमान टिकैत जी को बताना तो चाहते थे, लेकिन, वहां, यानी गाजीपुर बार्डर पर सजे श्रीमान राकेश टिकैत जी के दरबार में, कुछ ऐसे आदरणीय और परमआदरणीय लोग भी मौजूद थे जिनका सम्मान करना उन नौजवानों की मजबूरी बन चुकी थी, इसलिए वे चाहते हुए भी उन्हें सारी जानकारियां देने से हिचकिचा रहे थे।
हालांकि, वहां मौजूद भीड़ में से किसी ने ग्रेटा थम्बर्ग के बारे में श्रीमान टिकैत जी को थोड़ी बहुत जानकारियां तो दे ही दी। लेकिन, ये बात किसी को भी समझ नहीं आ रही थी कि, रिहाना और मिया खलिफा जैसी महान महिला किसानों के बारे में चैधरी साहब को भला कैसे बताया जाय कि इनके पास कितनी खेती है? उन खेतों में वे क्या फसल उगाती हैं? और उस फसल से कितना कमा लेतीं होगी? इनकी खेती का तरीका क्या और कैसा है?
और क्योंकि श्रीमान राकेश टिकैत जी को तो अपने इस आंदोलन के बारे में हर पल का अपडेट चाहिए था। इसलिए वे बिना सोच-विचार के और मौके की नजाकत को समझे बिना, इन विश्व प्रसिद्ध महिला किसानों के बारे में जल्दी से जल्दी जानना चाहते थे।
तभी अचानक आंदोलन की उस भीड़ में से निकलकर एक पढ़ा-लिखा टाइप का नौजवान चैधरी साहब के सामने आकर खड़ा हो जाता है जो देखने में एक दम आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सबसे होनहार छात्रों में से एक लग रहा था। वह नौजवान दावा करता है कि जो कुछ भी मैं इन रिहाना, मिया खलिफा और ग्रेटा थम्बर्ग नाम की महान पश्चिमी आनलाइन किसान महिलाओं के बारे में जानता हूं, आपको और यहां मौजूद तमाम किसान भाईयों और बुजुर्गों को बता सकता हूं।
बस फिर क्या था, वह पढ़ा-लिखा और होनहार नौजवान बेबाकी से गाजीपुर बाॅर्डर पर सजे चैधरी साहब के दरबार में मौजूद सभी लोगों की उस भीड़ में बेबाकी से उनके हर प्रश्न के उत्तर इस प्रकार से देने लगता है मानों एक बार फिर से साक्षात अकबर-बिरबल के बीच सवाल-जवाब का दौर चल पड़ा हो।
गाजीपुर बाॅर्डर पर उस समय मौजूद कई पत्रकारों और अन्य लोगों ने अपनी रिपोर्टिं में बताया है कि सवाल जवाब के उस दौर के समय वहां इतना हल्ला हा रहा था कि चौधरी साहब और उस नौजवान के बीच हो रही उस बातचीत को ठीक से सूना नहीं जा सकता था। हालांकि, जो कुछ सुनाई दे रहा था उसमें से चैधरी साहब के कुछ सवाल थे जो शायद इस प्रकार से थे – रिहाना, मिया खलिफा और ग्रेटा थम्बर्ग नाम की इन महान पश्चिमी ऑनलाइन किसान महिलाओं की खेती का तरीका क्या है?, ऑनलाइन खेती में फसल कहां बोई जाती है?, फसल का नाम क्या है?, कितनी फसल बो लेती होंगी?, अच्छी फसल के लिए दवाईयां कौन-सी डालती हैं?, फसल पकती कब है? काटी कब जाती है? खेत किसके होते हैं? फसल बिकती कहां है? खरीदार कौन होता है? और उसका भाव कैसे लगाया जाता है? वगैरह-वगैरह…।
अब वो बेचारा पढ़ा-लिखा नौजवान भी कम पढ़ा-लिखा तो नहीं था। उसने भी आक्फोर्ड से पढ़ाई की थी इसलिए उसके पास रिहाना और मिया खलिफा जैसी औरतें की ऑनलाइन वाली खेती के बारे करीब-करीब हर जानकारी मौजूद थी। इसलिए उसने भी वहां हजारों की संख्या में मौजूद उस भीड़ के सामने चौधरी साहब को बड़ी ही आसान और सरल भाषा में विस्तार से समझाने की खुब कोशिश की।
अब चौधरी राकेश टिकैत जी ठहरे एक दम देशी आदमी। उन्हें इंटरनेट वाली इस ऑनलाइन खेती के बारे में ना तो ठीक से समझ आ रही थी और ना ही वो उस नौजवान की इन सब बातों पर विश्वास ही कर पा रहे थे। या फिर हो सकता है कि चैधरी साहब नादान बनने का बहाना बना रहे हों। खैर जो भी हो…।
अब तो चौधरी टिकैत साबह भी अब अड़ गये, और गुस्से में लाल-पीले होतु हुए बोले, – बेटा मुझे तो लग रहा है कि या तो तू केन्द्र सरकार का भेजा हुआ आदमी है या फिर तेरी ये बातें केन्द्र सरकार के कानून की तरह हैं? जो कुछ भी समझ में नहीं आ पा रही हैं। क्योंकि मैंने तुझसे पूछा कुछ और है और तेरे उत्तर कुछ ओर हैं। एक तो वे बच्चियां बेचारी हमारे समर्थन में इनती दूर से आवाज उठा रहीं हैं और तू उनके खिलाफ इतना जहर उगल रहा है।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार गाजीपुर बाॅर्डर का माहौल उस वक्त ठहर सा गया था जब, चौधरी साहब ने उस नौजवान को कह दिया कि बेटा अब तो तूझे यहां अभी और इसी वक्त इन सबके सामने उन बच्चियों के ऑनलाइन खेत दिखाने पड़ेंगे वर्ना हम तो यही सोचेंगे कि तू इन बच्चियों को बदनाम कर रहा है। फिर तो तेरी खैर नहीं।
अब बेचारा वो नौजवान, मरता क्या न करता। बेचारा पढ़ा-लिखा नौजवान किसानों में बुरी तरह से फंस जो गया था। एक तरफ चौधरी साहब की जिज्ञासा के साथ गुस्सा भी था तो दूसरी तरफ इंटरनेट कनेक्शन का कटजाना। बाद में क्या हुआ कुछ खास जानकारी हमारे पास मौजूद नहीं है। लेकिन, वहां से जो खबरे निकल कर आ रहीं हैं उनके अनुसार चैधरी साहब को सारी जानकारियां उपलब्ध करा दी गई हैं और वे उन जानकारियों से अश्वस्त भी हैं।
- अजय चौहान