
गढ़ गणेश मंदिर जयपुर
अधिकतर लोगों का मानना है कि राजस्थान के जयपुर शहर की उत्तर दिशा में स्थित अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में नाहरगढ़ किले की पहाड़ी के पास वाली एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित ‘गढ़ गणेश मंदिर’ की स्थापना 18वीं शताब्दी में की गई थी। लेकिन, कई स्थानीय लोग ये भी मानते हैं कि यह मंदिर यहां पौराणिक काल में भी स्थापित हुआ करता था और, विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा उसे ध्वस्त कर उसकी मूर्तियों को खंडित कर दिया गया और यहां से भारी मात्रा में कीमती आभूषण, सोना और हीरे-मोती आदि लूट कर ले गये थे।
कई इतिहासकार और स्थानीय लोगों का मानना है कि महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने तो बस इस स्थान पर उसी प्राचीन मंदिर के अवशेषों एक बार फिर से जिर्णोद्धार करवाया था। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जिस पहाड़ी पर यह गढ़ गणेश मंदिर स्थापित है उस पहाड़ी की तहलटी में सवाई जयसिंह द्वितीय ने ‘अश्वमेघ यज्ञ’ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के बाद ही इस जयपुर शहर को सामरिक तथा आर्थिक महत्व देेने के लिए विस्तार की नींव रखी थी। इसलिए कहा जा सकता है कि गढ़ गणेश का यह मंदिर यहां प्राचीनकाल में भी स्थापित हुआ करता था जिसका जिर्णोद्धार सवाई जय सिंह द्वितीय ने 18वीं शताब्दी में यानी कि सन 1740 ईसवी में करवाया गया था।

इसके अलावा ‘गढ़ गणेश मंदिर’ वाले नाम के विषय में कहा जाता है कि क्योंकि यह मंदिर भी जयगढ़ और नाहरगढ़ के किले के पास की एक पहाड़ी पर किसी गढ़ यानी किसी किले के समान ही बनवाया गया है इसलिए इस मंदिर को एक प्रकार से भगवान गणेश का किला अर्थात गढ़ कहा गया और स्थानीय लोगों में यह मंदिर गढ़ गणेश मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने गुजरात के विशेष पंडितों को यहां बुलाकर सन 1740 ईसवी में यहां ‘अश्वमेध यज्ञ’ करवाया और उसी के बाद इस मंदिर के साथ-साथ जयपुर शहर की भी नींव रखी थी।
महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने इसमें गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना और मंदिर का निर्माण कुछ इस प्रकार से करवाया कि वे प्रति दिन सुबह सिटी पैलेस के ‘चंद्र महल’ की ऊपरी मंजिल से दूरबीन की सहायता से मूर्ति के दर्शन कर सकें। दरअसल, महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय अपने राजपरिवार के सदस्यों के साथ जिस ‘चंद्र महल’ में रहते थे वह आज जयपुर की शान कहे जाने वाले ‘सिटी पैलेस’ का ही एक हिस्सा है।
जयपुर का यह ‘गढ़ गणेश मंदिर’ सबसे अधिक इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि संभवतः पूरे संसार में यही एक ऐसा मंदिर है जिसमें विराजित गणेश जी की प्रतिमा बिना सूंड की है। एक ऊंची पहाड़ी पर होने के कारण यह मंदिर दूर से देखने पर किसी दिव्य मुकुट के समान नजर आता है।
पहाड़ी की ऊंचाई पर स्थित मंदिर के प्रांगण से जयपुर शहर का दृश्य बहुत ही आकर्षक लगता है। बारिश के मौसम में तो यह दृश्य और भी मनमोहक हो जाता है। मंदिर के प्रांगण से एक तरफ पहाड़ी पर नाहरगढ किला तो दूसरी तरफ पहाड़ी के नीचे ‘जलमहल’ का मनमोहक दृश्य दिखता है। मंदिर के गर्भगृह में तस्वीरें लेना पूरी तरह से प्रतिबंधित है, जबकि मंदिर के प्रांगण में तस्वीरें लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं है इसलिए देश-विदेश के अधिकतर पर्यटक यहां प्रोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करते देखे जा सकते हैं।
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जयपुर के इस गढ़ गणेश मंदिर की सबसे खास बात यह है कि महाराजा सवाई जयसिंह के वास्तुशास्त्रियों ने इस गढ़ गणेश मंदिर के अलावा गोविंद देव मंदिर, सिटी पैलेस और अल्बर्ट हाॅल को एक ही दिशा में कुछ इस प्रकार से समानांतर निर्माण करवाया गया है कि सिटी पैलेस से खड़े होकर राज परिवार हर दिन सुबह शाम मंदिर में होने वाली आरती के दर्शन किया करते थे। सिटी पैलेस की छत पर खड़े होकर पर्यटक इस दृश्य को आज भी दूरबिन की सहायता से देख सकते हैं।
पहाड़ी की ऊंचाई पर स्थित इस गढ़ गणेश मंदिर तक पहुंचने के लिए रैंप के आकार की कुल 365 सीढ़ियां है। कहा जाता है कि इन सीढ़ियों को बन कर तैयार होने में एक वर्ष यानी 365 दिनों का समय लग गया था। इस हिसाब से एक दिन में केवल एक ही सीढ़ी बन कर तैयार होती थी, इसीलिए यहां 365 सीढ़ियां हैं। आज भी श्रद्धालु उन्हीं 365 सीढ़ियों को चढ़ते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं।
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यह रास्ता पूरी तरह से पहाड़ी है और इसके दोनों तरफ पेड़-पौधे देखने को मिल जाते हैं। बारिश के मौसम में इस पूरे रास्ते में और गढ़ गणेश मंदिर के आसपास की हरियाली देखते ही बनती है इसलिए प्रकृति प्रेमी श्रद्धालु बारिश के मौसम में यहां सबसे ज्यादा आते हैं और यहां की हरियाली और शहरी की भीड़ से दूर एकांत और शांत वातावरण का अनुभव लेते हुए देखे जा सकते हैं।
गढ़ गणेश मंदिर के परिसर से पुराने जयपुर शहर का नजारा साफ-साफ देखा जा सकता है। इसके अलावा एक तरफ पहाड़ी पर नाहरगढ किला और दूसरी तरफ की पहाड़ी के नीचे की ओर जलमहल को साफ-साफ देखा जा सकता है।
गढ़ गणेश मंदिर जयपुर शहर के बाहरी इलाके में गेटर रोड पर ब्रह्मपुरी में स्थित है। जयपुर के प्रमुख रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से भी इस मंदिर की दूरी मात्र 6 किमी ही है इसलिए शहर के हर क्षेत्र से टैक्सी की सुविधा के अलवा लोकल सवारी भी आसानी से मिल जाती है।
– अजय सिंह चौहान