
History of Kashmir belongs to rishi Kashyap
श्री विष्णु पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि महर्षि कश्यप, सप्तऋषियों में इसीलिए प्रमुख हैं क्योंकि उन्होंने अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर देवों के समान इस सृष्टि के अनेकों रहस्यों को समझ लिया था।
तभी तो महर्षि कश्यप द्वारा इस सृष्टि के सृजन में दिए गए उनके महायोगदानों से हमारे सनातन साहित्य के वेद, पुराण, स्मृतियां, उपनिषद और ऐसे अनेकों धार्मिक ग्रंथ भरे पड़े हैं, जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि वे यानी महर्षि कश्यप ही हमारी इस ‘सृष्टि के सृजक’ हैं।
जबकि महर्षि कश्यप के जन्म के बारे में श्रीनरसिंह पुराण में बताया गया है कि, मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे इसलिए मरीचि ऋषि तथा उनकी पत्नी सम्भूति ने ही महर्षि कश्यप को जन्म दिया था। इसीलिए वे भी यानी महर्षि कश्यप भी मानस पुत्र हुए।
और क्योंकि मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे इसलिए उनकी संतान यानी महर्षि कश्यप भी मानस पुत्र यानी मानव ही हुए, और यहीं से मानव जीवन का प्रारंभ भी हुआ और मानव जीवन की आयु भी निश्चित हो गई थी।
अब बात आती है कि आखिर पृथ्वी पर अन्य जीवों की उत्पत्ति भला कैसे हुई होगी? तो इस विषय पर श्रीनरसिंह पुराण में कश्यप ऋषि के जीवन से जुड़े कुछ अन्य विस्तृत और स्पष्ट उल्लेखों से इस बात के स्पष्ट प्रमाण मौजूद हैं कि महर्षि कश्यप ने ही इस सृष्टि में जीवन को जन्म दिया था, तभी तो वे ही इस सृष्टि के परम पिता यानी ‘सृष्टि के सृजक’ कहलाये।
श्रीनरसिंह पुराण के अनुसार, कश्यम ऋषि की 17 पत्नियां थीं। उन सभी पत्नियों ने अपने-अपने स्वभाव, आचरण, गुण, कर्म और नाम के अनुसार ही अपनी-अपनी संतानों को जन्म दिया, जिसमें असूर, हयग्रीव, एकचक्र, महाबाहु और महाबल, गरूड़ तथा अन्य पक्षी, वासुकि नाग, बाघ, गाय, भैंस तथा अन्य दो खुर वाले पशुओं का भी जन्म हुआ।
महर्षि कश्यप की संतानों के रूप में अन्य कई प्रकार के पक्षियों और अनेकों प्रकार की वनस्पतियों का भी जन्म हुआ। इसके अलावा मानस पुत्रों का यानी मनुष्यों का भी जन्म हुआ और वे सभी यहां से संसार की अलग-अलग दिशाओं में फैल गये, और यहीं से पृथ्वी पर जीवन चक्र भी शुरू हो गया।
महर्षि कश्यप ने अपने जीवनकाल में कभी भी अपनी किसी भी संतान के लिए धर्म या अधर्म का पक्ष नहीं लिया। वे स्वयं नीति के अनुसार ही चलते थे और अपनी संतानों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे।
इसीलिए तो वे ऋषि-मुनियों और सुर-असुर, सभी के मूल पुरूष यानी परम पिता के रूप में आज भी माने जाते हैं।
महर्षि कश्यप ने भविष्य के समाज को एक नई दिशा देने के लिए ‘स्मृति-ग्रन्थ’ जैसी महान रचना की थी। इसके अलावा महर्षि कश्यप की प्रमुख रचनाओं में ‘कश्यप-संहिता’ को भी माना जाता है।
माना जाता है कि मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर हुआ करता था, जहां वे परमपिता ब्रह्म के ध्यान में रहते थे।
देश-विदेश के अनेकों इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं, पौराणिक तथा वैदिक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि ‘केस्पियन सागर’ एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप के नाम पर ही हुआ था।
-अमृति देवी