
बिहार राज्य के कैमूर जिले के भगवानपुर में और भभुआ जिला मुख्यालय से मात्र चैदह किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में सोन नदी के नजदीक साढ़े छह सौ फीट की ऊंचाई वाली मुण्डेश्वरी पहाड़ी पर माता मुण्डेश्वरी का एक ऐसा मंदिर है जो पौराणिक युग का माना जाता है। यह मंदिर पुरातात्विक धरोहर ही नहीं, तीर्थाटन व पर्यटन का एक जीवंत केन्द्र भी है। इसके अलावा यह मंदिर, भारत की सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक इमारतों में से एक है।
हालांकि यह इमारत कितनी पुरानी है और किस राजा द्वारा बनवाई गई इस बात के भी कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। लेकिन यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह माना जाता है कि, उदयसेन नामक राजा के शासनकाल में इस मंदिर का निर्माण हुआ होगा। हालांकि आज यह मंदिर एक ध्वस्त संरचना के रूप में आधी-अधुरी ही खड़ी है लेकिन फिर भी यह इमारत भारत की सर्वाधिक प्राचीन, ऐतिहासिक और सुंदर संरचनाओं में से एक मानी जाती है।
माता मुण्डेश्वरी की वर्तमान मंदिर संरचना को देखकर लगता है कि पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र मंदिर को मुगल आक्रमणकारियों ने लुटपाट के बाद भारी नुकसान पहुंचाया और इसकी प्रतिमाओं को भी खंडित तथा अपवित्र कर दिया।
मंदिर के आस-पास मौजूद तमाम अवशेष और प्रतिमाओं को आज भी यहां तहस-नहस अवस्था में देखा जा सकता है। कई प्रतिमाओं के अंग तो ऐसे टूटे और बिखरे हुए हैं मानो किसी भारी हथियार से उन पर बार-बार चोट की गयी हो। सन 1915 से यह इमारत भारतीय सर्वेक्षण विभाग की देखरेख में है। हालांकि इसको यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल करवाने के प्रयास भी चल रहे हैं।
यह मंदिर लगभग 600 फीट ऊँचाई वाली मुण्डेश्वरी पहाड़ी पर बना हुआ है। पुरातत्व विभाग का मानना है कि यहाँ से प्राप्त शिलालेख 389 ई. के आसपास का है जो इसकी प्राचीनता को दर्शाता है। नागरा शैली में बने मुण्डेश्वरी भवानी के इस मंदिर की नक्काशी और प्रतिमाएं उत्तरगुप्तकालीन बताई जाती हैं।
भारीभरकम और विशाल पत्थरों से बना हुआ यह मंदिर एक अष्टकोणीय संरचना है। इस मंदिर संरचना का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की ओर है। इतिहासकारों के अनुसार मुगलकाल के दौरान हुए हमलों और लुटपाट के समय इस मंदिर का शिखर ध्वस्त हो चुका था। जबकि उसके बाद इसके जिर्णोद्वार के समय इसके शिखर तो बनाया नहीं जा सका लेकिन इसके ऊपर छत अवश्य बना दी गई।
मंदिर के पूर्वी भाग में देवी मुण्डेश्वरी की मुख्य प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में प्रवेश के चार द्वार बने हुए हैं जिसमें से एक द्वार को बंद कर दिया गया है। मुख्य मंदिर के पश्चिम भाग में पूर्वाभिमुखी नंदी की विशाल प्रतिमा है, जो आज भी जस की तस है।
काले पत्थर पर तराशी गई देवी मुण्डेश्वरी की प्रतिमा प्राचीन काल की बताई जा रही है और यही प्रतिमा इस मंदिर के मुख्य आकर्षण का केंद्र है। साढ़े तीन फीट ऊंची माता की इस प्रतिमा को भैंसे पर सवार दिखाया गया है। देवी मंुडेश्वरी के रूप में यह माता दुर्गा का वैष्णवी रूप है। इसके अलावा मंदिर के मध्य भाग में एक दुर्लभ पंचमुखी शिवलिंग भी स्थापित है। इसीलिए यह मंदिर शिव और शक्ति के प्रतिक के रूप में माना जाता है। जिस पत्थर में यह पवित्र पंचमुखी शिवलिंग तराशा गया है उसकी विशेषता यह है कि सूर्य की स्थिति के साथ-साथ इस शिवलिंग का रंग भी बदलता रहता है।
कहते हैं कि चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी अवतरित हुई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था। इसीलिए यह स्थान मुण्डेश्वरी माता के नाम से जाना जाता है।
माता मुण्डेश्वरी को पशु बलि के रूप में श्रद्धालुओं द्वारा यहां बकरा चढ़ाया जाता है, परंतु उसका वध नहीं किया जाता है। बलि की यह सात्विक परंपरा संभवतः पूरे भारतवर्ष के अन्य किसी मंदिर में नहीं है। बलि की यह परंपरा यहां वर्षों पुरानी मानी जाती है। इसमें सबसे खास बात यह है कि यहां बकरे की जान नहीं ली जाती।
जानिए सही शब्द क्या है, नवरात्र या नवरात्री ? | Navratri or Navratri?
नवरात्र की रातें महत्वपूर्ण हैं या दिन, क्या कहता है विज्ञान? | Nights are important or days, in Navratri?
लगभग 600 फीट की ऊँचाई वाली पहाड़ी पर बने इस मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग की सुविधा है जिसपर छोटे और हल्के वाहन आसानी से आ-जा सकते हैं। लेकिन अधिकतर श्रद्धालु पैदल चल कर ही मंदिर तक पहुंचते हैं।
बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर में सोन नदी के नजदीक वाली करीब साढ़े छह सौ फीट की ऊंची मुण्डेश्वरी पहाड़ी स्थित माता मुण्डेश्वरी देवी के इस मंदिर में दर्शनों के लिए जाने का सबसे उत्तम समय अक्टूबर से अप्रैल के बीच का है।
बिहार राज्य पर्यटन निगम की ओर से चलाई जाने वाली बसें प्रतिदिन पटना से पहाड़ी के नीचे बसे गांव रामगढ़ के बीच चलतीं हैं। पटना से मुण्डेश्वरी मंदिर की दूरी लगभग 210 किलोमीटर है। जबकि उत्तर प्रदेश के वाराणसी से इस मंदिर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर दूर है। जबकि हवाई मार्ग से आने वालों के लिए भी यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट वाराणसी में ही है।
रेल मार्ग से यहां पहुंचने वाले यात्रियों के लिए वाराणसी तथा पटना से रेल द्वारा गया – मुगलसराय रेल मार्ग पर स्थित भभुआ रोड़ के मोहनियां नाम के स्टेशन उतरना होता है। मोहनियां स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है। और यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए टेम्पो, जीप, मिनी बस की सहायता ली जा सकती है।
– अजय सिंह चौहान